मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन चार मास के लिए भगवान विष्णु शयन करने चले जाते हैं। यह नारायण के शयन एवं नर के जागरण का काल है। मान्यता है कि भगवान के शयन करने की अवधि के दौरान धार्मिक कार्य नहीं किए जाते। यह काल चातुर्मास कहलाता है।
इस एकादशी को देवशयनी एकादशी, महाएकादशी, आषाढ़ी एकादशी, पद्मनाभा एकादशी एवं हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। देवशयनी कथा : सूर्यवंशी राजा मान्धाता सत्यवादी एवं बड़े प्रतापी थे। उनके राज्य में एक बार भीषण अकाल पड़ा। राजा इस कष्ट से मुक्ति पाने के लिए सैनिकों के साथ जंगल की ओर गए। वहां उन्होंने ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा ऋषि का आश्रम देखा। राजा ने अपनी समस्या ऋ षि को बताई। अंगिरा ऋ षि ने उन्हें देवशयनी एकादशी व्रत का पालन करने को कहा।
नहीं होंगे चार महीने विवाह
देवशयनी एकादशी से देव सो जाएंगे। इसके साथ ही चातुर्मास लगने से अगले चार महीने विवाह नहीं होंगे। देव उठनी एकादशी से भगवान के जागने के साथ ही विवाह के मुहूर्त फिर एक महीने तक बनेंगे। इस अवधि में लोग सिर्फ भगवान के भजन-कीर्तन कर सकेंगे। चातुर्मास में शादी-ब्याह, उपनयन संस्कार, मुंडन संस्कार आदि सभी मांगलिक कार्य ये सभी वर्जित हैं ।
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