BREAKING NEWS

Wednesday, March 8, 2017

हिंदू धर्म की महान नारिया ....उनके चरणों में कोटि कोटि वंदन

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।  

माता पार्वती :- 


 भारतीय महिलाओं में सबसे विराट अगर किसी का व्यक्तित्व है तो वो मां पार्वती का। दुनियाभर की महिलाओं के लिए वे आदर्श और प्रेरणास्रोत हैं। माता सती ने ही पार्वती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। पहले जन्म में वे ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की पुत्री थी और उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था। भगवान  राम जी की परीक्षा और दक्ष द्वारा शिव के अपमान के चलते उन्होंने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। भारतीय नारियों को देवी सती से बहोत सारी बाते सीखनी चाहिए.


माँ कौशल्या -   

भगवान राम की माता कौशल्या बहुत ही सहृदय थीं। अपने पुत्र का वन-गमन उसके लिए सबसे हृदयविदारक घटना थीं। माता कौशल्या ने अपने पुत्र को इस प्रकार संस्कारित किया कि विमाता कैकेयी के कुभावों से भी राम विचलित नहीं हुवे. उनका जीवन करुण और दयनीय हो जाता है लेकिन फिर भी वे संयम और सामंजस्यता से पातिव्रत्य, धर्म, साधुसेवा, भगवदाराधना का पालन करती रहीं।  रामायण की हरेक स्त्री पात्र से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता.


देवी सीता - 


जिनका आदर्श दुनिया की सभी स्त्रियों ने लेना ही चाहिए.  राजा जनक की पुत्री का नाम सीता इसलिए था कि वे जनक को खेत की रेखाभूमि से प्राप्त हुई थीं इसलिए उन्हें भूमिपुत्री भी कहा गया। राजा जनक की पुत्री होने के कारण उन्हें विदैही भी कहा गया। राजा  जनक विदैही संस्कृति और धर्म के अनुयायी थे।   योग -वियोग को मिथ्या मानने वाले राजा जनक देवी सीता के विवाह पछांत सब योग वियोग की बाते भूल गए थे. राम जी का वनवास समाप्त होने के बाद देवी सीता को भी फिरसे वनवास जाना पड़ा था उस समय उनका बिताया हवा समय बहुत ही कष्टकारी था राज रानी होकर भी जिनको अपना समय वनवास में बिताना पड़ा. अपने पुत्रो को स्वावलंबी बनाने की शिक्षा देवी सीता से ही लेनी चाहिए .


माँ शबरी   -


माँ शबरी का नाम रामायण और राम भक्ति में एक महानता सिद्ध करता है.शबरी के पिता भीलों के राजा थे। शबरी जब विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने एक दूसरे भील कुमार से उसका विवाह पक्का कर दिया और धूमधाम से विवाह की तैयारी की जाने लगी। विवाह के दिन सैकड़ों बकरे-भैंसे बलिदान के लिए लाए गए।
बकरे-भैंसे देखकर शबरी ने अपने पिता से पूछा- 'ये सब जानवर यहां क्यों लाए गए हैं?' पिता ने कहा- 'तुम्हारे विवाह के उपलक्ष्य में इन सबकी बलि दी जाएगी।'  यह सुनकर बालिका शबरी को अच्छा नहीं लगा और सोचने लगी यह किस प्रकार का विवाह है, जिसमें इतने निर्दोष प्राणियों का वध किया जाएगा। यह तो पाप कर्म है, इससे तो विवाह न करना ही अच्छा है। ऐसा सोचकर वह रात्रि में घर से जंगल में भाग जाती है  जंगल में छुप छुप कर रुशियों की सेवा करना उनका कार्य हुवा करता था लेकिन एक दिन अंत में मतंग ऋषि ने उस पर कृपा की।  जब मतंग ऋषि मृत्यु शैया पर थे तब उनके वियोग से ही शबरी व्याकुल हो गई। महर्षि ने उसे निकट बुलाकर समझाया- 'बेटी! धैर्य से कष्ट सहन करती हुई साधना में लगी रहना। प्रभु राम एक दिन तेरी कुटिया में अवश्य आयेंगे बस इतना ही सुनकर अपने गुरु की बातों पर अपार श्रधा के कारन राम जी को भी उनके कुटिया में आना पड़ा.


गांधारी  -


गांधार देश के सुबल नामक राजा की कन्या होने के कारण धृतराष्ट्र की पत्नी को गांधारी कहा जाता था। गांधारी ने जब सुना कि उसका भावी पति अंधा है तो उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली जिससे कि पतिव्रत धर्म का  पालन कर पाए। यह पट्टी उसने आजन्म बांधे रखी। गांधारी पतिव्रता के रूप में आदर्श थीं।



कुंती  - 


कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थीं। महाराज कुंतीभोज से इनके पिता की मित्रता थी, उसके कोई संतान नहीं थी, अत: ये कुंतीभोज के यहां गोद आईं और उन्हीं की पुत्री होने के कारण इनका नाम कुंती पड़ा। कुंती ने अपने पुत्रों को जो संस्कार और शिक्षा दी वह उल्लेखनीय और प्रशंसनीय है।  


द्रौपदी  - 


 कहा जाता है कि द्रौपदी के कारण ही महाभारत युद्ध हुआ। क्यों?    क्योंकि पांडवों द्वारा बनवाए गए मायानिर्मित सभाभवन में विभिन्न वैचित्र्यता थी। दुर्योधन जब वहां घूम रहा था तब उसको अनेक बार स्थल पर जल की, जल पर स्थल की, दीवार में द्वार की और द्वार में दीवार की भ्रांति हुई। कहीं वह सीढ़ी में समतल की भ्रांति होने के कारण गिर गया और कहीं पानी को स्थल समझ पानी में भीग गया। उसकी इस स्थिति को देखकर युधिष्ठिर को छोड़कर द्रौपदी सहित अन्य पांडव हंसने लगे। कहा यह भी भी जाता है कि द्रौपदी ने उन्हें 'अंधे का बेटा अंधा' कहा था। दुर्योधन अपना यह अपमान सह नहीं पाए और द्रौपदी को सजा देने की योजनाएं बनाने लगा।  द्रौपदी इतिहास में अकेली ऐसे महिला है जिसने सबसे ज्यादा सहा। द्रौपदी के जीवन पर सैकड़ों ग्रंथ लिखे गए और उनके चरित्र की पवित्रता को उजागर किया गया।  


देवकी-यशोदा  -


जिसके पुत्र का सारा विश्व प्रणाम करता है. भगवान कृष्ण की माता देवकी ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष जेल में ही बिता दिए और कृष्ण को जिस माता ने पाला उनका नाम था यशोदा। इतिहास में देवकी की कम लेकिन यशोदा की चर्चा ज्यादा होती है, क्योंकि उन्होंने ही कृष्ण को बेटा समझकर पाल-पोसकर बड़ा किया और एक आदर्श मां बनकर इतिहास में अजर-अमर हो गई। माता पार्वती, माता सीता  और माता यशोदा जैसी मां को ढूंढना मुश्किल है।  


अरुंधति  -


अरुंधति महान तपस्विनी थी। अरुंधति ऋषि वशिष्ठ की पत्नी थी। आज भी अरुंधति सप्तर्षि मंडल में स्थित वशिष्ठ के पास ही दिखाई देती हैं। अरुंधति भारत की महान महिलाओं में से एक है। भारत में नवविवाहित लड़कियां आकाश में अरुंधति को देखकर उनकी तरह आदर्श पत्नी बनने की कामना करती हैं। आकाश में एक तारा है जिसका हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने नाम अरुंधति रखा है।

सुलक्षणा  -  


 रावण के पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत) की पत्नी सुलक्षणा थीं जिसे सुलोचना भी कहा जाता था। इन्हें भी पांच सतियों में शामिल किया गया है।
  रामायण अनुसार लक्ष्मण मूर्च्छा के बाद अगले दिन जब दोबारा लंकापति रावण ने मेघनाद को ही युद्ध की बागडोर सौंपी तो मेघनाद की पत्‍‌नी सुलोचना ने उसे युद्ध में जाने से मना किया, लेकिन मेघनाद ने उसकी एक न सुनी और युद्ध में लड़ते हुए मेघनाद की जान गई। जिस पर उसकी पत्‍‌नी भी मेघनाद के साथ ही सती हो गई।  


 मंदोदरी   


मंदोदरी रामायण के पात्र, लंकापति रावण की पत्नी थी। हेमा अप्सरा से उत्पन्न रावण की पटरानी, जो मेघनाद की माता तथा मयासुर की कन्या थी। वे रावण को सदा अच्छी सलाह देती थीं और कहा जाता है कि अपने पति के  मनोरंजनार्थ इसी ने शतरंज के खेल का प्रारंभ किया था। इसकी गणना भी पंचकन्याओं में है।
   कई कलाओं में कौशल और बुद्धिमान पत्नी होने के बावजूद रावण ने अपनी पत्नी की कभी नहीं सुनी।  इसी कारन रावन का सर्वनाश हो गया 



सती अनसूया 


त्रि ऋषि की पत्नी और ब्रह्मवादिनी (संन्यासीन) सती अनसूया के पति भक्ति की प्रसिद्धी को सब जानते हैं। सती अनसूया का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। रामायण, महाभारत और पुराणों में उनका उल्लेख मिलता है। पतिव्रता देवियों में अनसूया का स्थान सबसे ऊँचा है.


देवी रुख्मिणी



भीष्मक का बड़ा पुत्र रुक्मी भगवान श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। वह बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था, क्योंकि शिशुपाल भी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था। भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणि ने मन ही मन निश्चय किया कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी को भी पति रूप में वरण नहीं करेगी। उधर, भगवान श्रीकृष्ण को भी इस बात का पता हो चुका था कि विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी परम रूपवती तो है ही, परम सुलक्षणा भी है। श्रीकृष्ण की पटरानियों में रुक्मिणी का महत्त्वपूर्ण स्थान था। उनके प्रेम और उनकी भक्ति पर भगवान श्रीकृष्ण मुग्ध थे। उनके प्रेम और उनकी कई कथाएं मिलती हैं, जो बड़ी प्रेरक हैं।

संत मीरा बाई 


मीराबाई के जीवन से सम्बंधित कोई भी विश्वसनीय ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं। विद्वानों ने साहित्य और दूसरे स्रोतों से मीराबाई के जीवन के बारे में प्रकाश डालने की कोशिश की है। इन दस्तावेजों के अनुसार मीरा का जन्म राजस्थान के मेड़ता में सन 1498 में एक राजपरिवार में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठोड़ एक छोटे से राजपूत रियासत के शासक थे। वे अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थीं और जब वे छोटी बच्ची थीं तभी उनकी माता का निधन हो गया था। उन्हें संगीत, धर्म, राजनीति और प्राशासन जैसे विषयों की शिक्षा दी गयी। मीरा का लालन-पालन उनके दादा के देख-रेख में हुआ जो भगवान् विष्णु के गंभीर उपासक थे और एक योद्धा होने के साथ-साथ भक्त-हृदय भी थे और साधु-संतों का आना-जाना इनके यहाँ लगा ही रहता था। इस प्रकार मीरा बचपन से ही साधु-संतों और धार्मिक लोगों के सम्पर्क में आती रहीं। मीरा का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोज राज के साथ सन 1516 में संपन्न हुआ। उनके पति भोज राज दिल्ली सल्तनत के शाशकों के साथ एक संघर्ष में सन 1518 में घायल हो गए और इसी कारण सन 1521 में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पति के मृत्यु के कुछ वर्षों के अन्दर ही उनके पिता और श्वसुर भी मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ युद्ध में मारे गए।
ऐसा कहा जाता है कि उस समय की प्रचलित प्रथा के अनुसार पति की मृत्यु के बाद मीरा को उनके पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु वे इसके लिए तैयार नही हुईं और धीरे-धीरे वे संसार से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में कीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। ऐसा माना जाता है कि बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहने के बाद मीरा द्वारिका चली गईं जहाँ सन 1560 में वे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गईं।

संत मुक्ताबाई 
संत मुक्ताबाई ह्या संत ज्ञानेश्वरांच्या धाकट्या बहीण म्हणून सर्वांना परिचित आहेत. परंतु त्यांचे स्वतःचेही स्वतंत्र अस्तित्व होते. त्यांनी रचलेले ताटीचे एकूण ४२ अभंग प्रसिद्ध आहेत. या अभंगांमध्ये त्यांनी संत ज्ञानेश्वरांना काही बोध दिला आहे. त्या योगी चांगदेवांच्या गुरू होत. त्यांनी ज्ञानबोध या ग्रंथाचेही लेखन केले आहे असे संशोधनांती स्पष्ट होते. ह्या ग्रंथामध्ये संत निवृत्तीनाथ आणि संत मुक्ताबाई ह्यांचा संवाद आलेला आहे. त्या समाधिस्थ होण्याच्या थोडेसे आधी झालेले हे लिखाण असावे, असे त्यातील अंतर्गत संदर्भांवरून लक्षात येते.

राजमाता जिजाऊ 
मराठा साम्राज्याचे संस्थापक छत्रपती शिवाजी महाराजांच्या मातोश्री शिवरायांच्या मनात कर्तृत्वाची ठिणगी टाकतानाच जिजाबाईंनी त्यांना राजनीतीही शिकविली. समान न्याय देण्याची वृत्ती आणि अन्याय करणार्‍याला कठोरात कठोर शिक्षा देण्याचे धाडस दिले . शस्त्रास्त्रांच्या प्रशिक्षणावर स्वत: बारकाईने लक्ष ठेवले . शहाजीराजांची कैद व सुटका, अफझलखानाचे संकट, आग्रा येथून सुटका अशा अनेक प्रसंगांत शिवरायांना जिजाबाईंचे मार्गदर्शन लाभले. शिवराय मोठ्या मोहिमांवर असताना, खुद्द जिजाबाई राज्यकारभारावर बारीक लक्ष ठेवत असत. आपल्या जहागिरीत त्या जातीने लक्ष घालत. सदरेवर बसून स्वत: तंटे सोडवत.जिजाबाई ही आपल्या मनात तयार असलेली हिंदवी स्वराज्याची संकल्पना प्रत्यक्षात साकार करण्यासाठी छत्रपती शिवरायांना ज्ञान, चारित्र्य, चातुर्य, संघटन व पराक्रम अशा राजस व सत्त्वगुणांचे बाळकडू देणार्‍या राजमाता होय.

Share this:

Post a Comment

सूचना

विदर्भ24न्यूज़ पोर्टल को बेहतर बनाने में सहायता करें और किसी खबर या अंश मे कोई गलती हो या सूचना / तथ्य में कोई कमी हो तो हमसे संपर्क करे - 9421719953

 
Copyright © 2014 Vidarbha Latest News विदर्भ24न्यूज Amravati Letest News. Template Designed by Vidarbha24news - या इंटरनेट न्यूज चॅनेल तथा ऑनलाईन वेब पोर्टलमध्ये प्रसिध्द झालेल्या बातम्या आणि लेखामधून व्यक्त झालेल्या मतांशी संपादक / संचालक सहमत असतीलच असे नाही.